मनीष कश्यप vs PMCHमनीष कश्यप vs PMCH

प्रस्तावना

बिहार में जब भी कोई सामाजिक या प्रशासनिक मुद्दा सामने आता है, तो कुछ नाम ऐसे होते हैं जो तुरंत चर्चा में आ जाते हैं। उन्हीं में से एक नाम है मनीष कश्यप, जिन्हें लोग “सच तक” यूट्यूब चैनल के माध्यम से अच्छी तरह जानते हैं। हाल ही में पटना मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (PMCH) में उनके साथ जो कुछ हुआ, वह सिर्फ एक व्यक्तिगत घटना नहीं थी — यह मीडिया, सिस्टम और आम जनता के बीच के रिश्ते पर सवाल खड़ा करता है।

क्या हुआ था PMCH में?

मनीष कश्यप PMCH एक मरीज के परिजन के साथ पहुंचे थे, जिनकी शिकायत थी कि अस्पताल में इलाज में लापरवाही हो रही है। अपनी आदत के अनुसार, मनीष ने अस्पताल की हालत का वीडियो बनाना शुरू किया और कुछ डॉक्टरों से सवाल भी किए। इसी दौरान, एक महिला डॉक्टर से उनकी कहासुनी हो गई।

डॉक्टरों का आरोप है कि मनीष ने उनके साथ अनुचित भाषा का प्रयोग किया, जबकि मनीष का दावा है कि उन्होंने सिर्फ अपने पत्रकार धर्म के तहत सवाल पूछे थे। इसके बाद मामला इतना बढ़ा कि मनीष कश्यप को डॉक्टरों ने एक कमरे में ले जाकर लगभग तीन घंटे तक बंद रखा, उनका मोबाइल फोन छीना गया और वीडियो डिलीट कर दिया गया।


यह भी पढ़ें : Patna का PMCH 2027 में बनेगा दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा अस्पताल – जानिए नीतीश बाबू कैसे बदल रहे बिहार की सेहत की तस्वीर |

मनीष कश्यप का पक्ष

मनीष कश्यप का कहना है कि उन्होंने किसी के साथ कोई बदसलूकी नहीं की। वे सिर्फ एक मरीज की सहायता करने गए थे और अस्पताल में फैली अव्यवस्था को उजागर कर रहे थे।

उनका दावा है कि,

“मैंने किसी डॉक्टर को हाथ तक नहीं लगाया, न कोई गाली दी। मैं जनता की आवाज़ बनकर सवाल कर रहा था।”

उनका ये भी कहना है कि उन्हें पीटा गया और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया।

डॉक्टरों का पक्ष

PMCH के जूनियर डॉक्टरों का कहना है कि मनीष ने अस्पताल परिसर में बिना अनुमति वीडियो रिकॉर्ड किया, और महिला डॉक्टर से उग्र भाषा में बात की, जो उन्हें अपमानजनक लगी।

उन्होंने कहा कि,

“पत्रकारिता का मतलब यह नहीं कि आप किसी पर भी कैमरा तान दें और अपमानजनक सवाल पूछें। हमारे लिए भी सम्मान जरूरी है।”

इस बयान के बाद मेडिकल कम्युनिटी के कई लोग मनीष कश्यप के खिलाफ खड़े हो गए।

पुलिस और प्रशासन की भूमिका

घटना की सूचना मिलते ही पटना पुलिस मौके पर पहुंची और मनीष कश्यप को वहां से सुरक्षित बाहर निकाला गया। दोनों पक्षों की ओर से FIR दर्जकी गई है और मामले की जांच जारी है।

पटना प्रशासन पर भी सवाल उठे कि एक पत्रकार को तीन घंटे तक अस्पताल में क्यों बंद रखा गया, और मौके पर तत्काल कार्रवाई क्यों नहीं हुई।

सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया

घटना के बाद सोशल मीडिया पर दो खेमे बन गए:

  • एक पक्ष मनीष कश्यप को सही ठहरा रहा है, उनका कहना है कि वे जनता की आवाज़ हैं और उन्हें चुप कराने की कोशिश की जा रही है।
  • दूसरा पक्ष डॉक्टरों का समर्थन कर रहा है, यह कहते हुए कि कोई भी पेशेवर महिला डॉक्टर के साथ बदसलूकी बर्दाश्त नहीं की जा सकती।

क्या ये घटना बिहार की व्यवस्था पर सवाल नहीं?

PMCH जैसे संस्थान में पत्रकार के साथ ऐसा व्यवहार होना लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाता है। अगर एक पत्रकार को सच दिखाने पर प्रताड़ित किया जा सकता है, तो आम जनता का क्या हाल होगा?

साथ ही, यह घटना डॉक्टरों की सुरक्षा, गरिमा और काम के माहौल को लेकर भी गंभीर चिंता दिखाती है। दोनों पक्षों की बातों में कुछ न कुछ सच्चाई हो सकती है, लेकिन सवाल यह है कि समाधान क्या है?

निष्कर्ष

PMCH में मनीष कश्यप के साथ हुआ विवाद सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि यह बिहार की प्रशासनिक व्यवस्था, स्वास्थ्य सेवा और मीडिया की स्थिति को दर्शाता है।

सभी पक्षों को शांति, संवेदनशीलता और कानून का पालन करते हुए इस विवाद का हल निकालना चाहिए। जहां पत्रकारिता को स्वतंत्रता मिलनी चाहिए, वहीं डॉक्टरों को भी सुरक्षित माहौल में काम करने का हक है।

डिस्क्लेमर (Disclaimer):

यह लेख केवल जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें शामिल सभी जानकारियाँ सार्वजनिक रूप से उपलब्ध स्रोतों और समाचार रिपोर्ट्स पर आधारित हैं। gyandharm.in वेबसाइट केवल वही जानकारी साझा कर रही है जो पहले से सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध है। हमारा उद्देश्य किसी व्यक्ति, संस्था या सरकारी संगठन को बदनाम करना नहीं है। मनीष कश्यप और PMCH से जुड़ी किसी भी घटना की पुष्टि संबंधित अधिकृत स्रोतों से ही करें। पाठकों से अनुरोध है कि किसी निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले सभी पक्षों को समझें और आधिकारिक तथ्यों की पुष्टि करें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *